चल चलें नदी किनारेकि रात घनी हो गयीसुकून होगा थोड़ा वहांमशक्कत दिन की अब कम होगी ऐसा करउधेड़बुन का बक्सा रख देअहाते की अलमारी मेंऔर संदूक भीतर जो बंद हैसुकून का झोलाउससे तू उठा ले चलेंगे फिरहौले क़दमों सेकिनारे किनारेकहीं देख कर साफ़ सा पत्थररात की चादर बिछा लेंगेचाँद की रोशनी की रुई बना लेंगेऔर […]
Poem
आधे-अधूरे कुछ पूरे: कविता
रात की फुरसत मेंकरेंगे चांद से जब गूफ्तगूतो हौसला बांध करबताऊंगा तुझे मैंख्वाब अधूरा कल जो मैंने बुना थाआधा-जागा आधा-सोयागीत पुराना फिर जो सुना था, सितारों की बुनकर टिमटिमाहटडबडबाई अपनी आंखों सेतू भी बताना मुझेअहाते में तूने अपनेकिस चिड़िया की गूंज सुनी थीऔर घर की चौखट पे बैठकहानियां कल जो तूने बुनी थी मीलों दूरकैद […]
फितरत: कविता
ऐसा नहीं कि मुद्दा समझ नहीं आता,या बदलते हालात का इल्म नहीं है मुझे । पर हार मान लूँ ये फितरत में नहीं, और यूँ ही जाने दूँ ये मेरी ख़सलत नहीं । ना हर्ज़ मुझे मिटटी फांकने काऔर ना ही धूल खाने का है,एक दफा तो ज़ोर आजमाइश करूंगा ही,अंजाम चाहे जो भी हो। Image Ref – Please Click Here. […]
ख्वाबों की चादर: कविता
कुछ ख्वाबों की कत्तरें जोड़ करमैंने एक चादर बनाई थी,सोचा थाकि फुरसत के लम्हों मेंरूह को आराम दूंगा। पर पसंद आ गई वो लोगों कोअरमानों के बाज़ार में और उस दिन से मैंचादरों का दुकानदार बन गया, अब पैसा बहुत हैऔर चादरें भी भरी पड़ी है,कुछ नहीं है तो,बस चैन के दो लम्हे,थोड़ी सी फुरसतऔर […]