Aadhe Adhure Kuchch Poore - Hindi Kavita

आधे-अधूरे कुछ पूरे: कविता

रात की फुरसत में
करेंगे चांद से जब गूफ्तगू
तो हौसला बांध कर
बताऊंगा तुझे मैं
ख्वाब अधूरा कल जो मैंने बुना था
आधा-जागा आधा-सोया
गीत पुराना फिर जो सुना था,

सितारों की बुनकर टिमटिमाहट
डबडबाई अपनी आंखों से
तू भी बताना मुझे
अहाते में तूने अपने
किस चिड़िया की गूंज सुनी थी
और घर की चौखट पे बैठ
कहानियां कल जो तूने बुनी थी

मीलों दूर
कैद हम दोनों
अपने अपने रेगिस्तानों में
चल करें यो कि
थोड़ी मेरे हिस्से की तपस तू पी लेना
और थोड़ी तेरे हिस्से की धूप मैं पी लूंगा
थोड़ा मेरे हिस्से का तू जी लेना
और थोड़ा तेरे हिस्से का मैं जी लूंगा
आधे- अधूरे
कुछ पूरे
यों ही हम होते रहेंगे ||

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