ऐसा नहीं कि
मुद्दा समझ नहीं आता,
या बदलते हालात का
इल्म नहीं है मुझे ।
पर हार मान लूँ
ये फितरत में नहीं,
और यूँ ही जाने दूँ
ये मेरी ख़सलत नहीं ।
ना हर्ज़ मुझे
मिटटी फांकने का
और
ना ही धूल खाने का है,
एक दफा तो
ज़ोर आजमाइश करूंगा ही,
अंजाम चाहे जो भी हो।
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