आज महाशय पहली बार उनसे
मिलने जा रहे हैं,
इसीलिये नकाब पहना
और जा दस्तक दे दी उनके द्वार ।
दस्तक सुन वो भी भाँप गए
कि आया है कोई नया मेहमां ।
ज़नाब ने भी नकाब पहना
और द्वार खोल दिया।
नकाब ने नकाब का स्वागत किया,
नकाब नकाब से गले मिला
और नकाब की हँसी का जवाब भी
नकाब ने कुछ इसी तरह दिया ।
व्याख्यानों और प्रेमालापों में
नकाबों की पहली मुलाक़ात बीत गयी
और मुलाकातों का सिलसिला
जो कुछ इसी तरह आगे बढ़ने लगा
तो हर एक मुलाकात पर
नकाब की एक परत फिसलती चली गयी
और दिखाई देने लगें कटे फटे चेहरे ।
एक दिन वो चेहरे भी फिसल कर
सामने मेज पर बिखर गए कि
तभी दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी
और दोनों ने फिर नकाब पहन लिये ॥
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