सालों से बंद संदूक में
वो तह लगे खत,
कुछ पोस्टकार्ड, कुछ इनलैंड
और कुछ लिफाफे
किताबों के नीचे दबी यें पुरानी चिट्ठियाँ,
बड़ी संजीदगी से मानो
मैने कुछ यादों को संजोया था,
कुछ अफ़सानें बटोरे थे,
तो कुछ फ़लसफ़े खोज़ लिए थे|
पंखे की हवा में जो ये फड़फड़ाई
कि मुझे किसी की हँसी
तो किसी की मुस्कुराहट याद आई |
और कुछ में नमी जो गहरी थी,
तो शायद किसी आँसू से स्याही थोड़ा फैली थी |
इन चिट्ठियों में अभी भी कितने तराने क़ैद हैं,
कितने किस्से, कितनी बातें सहज हैं,
आडी-तिरछी, उपर-नीचे जातीं लाइनें,
और उनमें वो अक्षरों का ताना बाना
लिखावट थी कि वो
दूर कहीं कोई आवाज़ हुआ करती थी,
उन बंद लिफाफो में भी कोई बात हुआ करती थी |
सालों से सँजोयें, संदूकों में बन्द
इन पुराने खतों के
जवाब जो अभी भी बाकी हैं,
बातें अनसुनी, कुछ अनकही ,
कसक अधूरी अभी भी कोई बाकी है,
कि किसी खिड़की के करीब बैठ कर मैं,
कुछ फसाने तो कुछ अफ़साने बुना करता हूँ |
अरफ़ दर अरफ़
आज भी
इन पुरानी चिट्ठियों के जवाब जो
चुपचाप मैं लिखा करता हूँ |
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