आज सुबह सेअज़ीब सा एहसास है ऐसा लग रहा है कि मैं गंगा में तैर रहा हूँ हरिद्वार वाली गंगा नहीं,इलाहाबाद वाली जो शांत है बस बहे चली जा रही है और मैं तट की हलचल से कोसो दूर उल्टा लेटन जाने कब से आसमान को निहार रहा हूँ एकटक अकेले एक लाश की तरह – एकदम मौन, एकदम स्थिर ।। Click here to read all my poems […]
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फितरत: कविता
ऐसा नहीं कि मुद्दा समझ नहीं आता,या बदलते हालात का इल्म नहीं है मुझे । पर हार मान लूँ ये फितरत में नहीं, और यूँ ही जाने दूँ ये मेरी ख़सलत नहीं । ना हर्ज़ मुझे मिटटी फांकने काऔर ना ही धूल खाने का है,एक दफा तो ज़ोर आजमाइश करूंगा ही,अंजाम चाहे जो भी हो। Image Ref – Please Click Here. […]
ख्वाबों की चादर: कविता
कुछ ख्वाबों की कत्तरें जोड़ करमैंने एक चादर बनाई थी,सोचा थाकि फुरसत के लम्हों मेंरूह को आराम दूंगा। पर पसंद आ गई वो लोगों कोअरमानों के बाज़ार में और उस दिन से मैंचादरों का दुकानदार बन गया, अब पैसा बहुत हैऔर चादरें भी भरी पड़ी है,कुछ नहीं है तो,बस चैन के दो लम्हे,थोड़ी सी फुरसतऔर […]