आज सुबह से
अज़ीब सा एहसास है
ऐसा लग रहा है
कि मैं गंगा में तैर रहा हूँ
हरिद्वार वाली गंगा नहीं,
इलाहाबाद वाली
जो शांत है
बस बहे चली जा रही है
और मैं
तट की हलचल से कोसो दूर
उल्टा लेट
न जाने
कब से आसमान को
निहार रहा हूँ
एकटक
अकेले
एक लाश की तरह –
एकदम मौन, एकदम स्थिर ।।
Click here to read all my poems