
चल चलें नदी किनारेकि रात घनी हो गयीसुकून होगा थोड़ा वहांमशक्कत दिन की अब कम होगी ऐसा करउधेड़बुन का बक्सा रख देअहाते की अलमारी मेंऔर संदूक भीतर जो बंद हैसुकून का झोलाउससे तू उठा ले चलेंगे फिरहौले क़दमों सेकिनारे किनारेकहीं देख कर साफ़ सा पत्थररात की चादर बिछा लेंगेचाँद की रोशनी की रुई बना लेंगेऔर […]