ख्वाबों की चादर: कविता

ख्वाबों की चादर - कविता उन सबके लिए है जिनके अरमान और ख़्वाब कहीं बाजार में बिक गए। कब उनके ख्वाबों का मोल लगा उन्हें पता ही नहीं चला।

कुछ ख्वाबों की कत्तरें जोड़ करमैंने एक चादर बनाई थी,सोचा थाकि फुरसत के लम्हों मेंरूह को आराम दूंगा। पर पसंद आ गई वो लोगों कोअरमानों के बाज़ार में और उस दिन से मैंचादरों का दुकानदार बन गया, अब पैसा बहुत हैऔर चादरें भी भरी पड़ी है,कुछ नहीं है तो,बस चैन के दो लम्हे,थोड़ी सी फुरसतऔर […]

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