मैं आदी हूँ तेरा, तेरे लबों का इस कदर,कि सिगरेट के धुएँ सा तू मुझे पिये जाए,छु लूँ तेरी तड़फ को, तेरे हर ज़ज्बात को,कि कश-दर-कश भीतर तू मुझे लिये जाए । तेरी बेचैनी, तेरे हर मसले की दवा मैं बन जाऊं,कि हर साँस में गहरा जो तुझमें मैं बसता जाऊं,आधा हिस्सा मेरा जो ज़िद्द […]
जीवन
कुछ शेष नहीं: कविता
सारी राहमेरा जीवनआकांक्षाओं की आग में जलता रहाऔरपरिवेश की भट्टी में धधकता रहाराख बनता रहा । अंतत:जब मैं घर पहुंचातो सब कुछजल कर ख़ाक हो चुका था,बाकी थी तोराख के ऊपर पड़ीकुछ काली, जली हड्डियाँ,मैंने उन्हें भी इकठ्ठा कियाऔर गँगा में बहा दिया । नि:संदेह, अब कुछ शेष नहीं था ॥ Click here to read all my […]