कोई गिला नहीं तुझसे: कविता Tinder Poem/Break-up Poem

कोई गिला नहीं तुझसे: कविता

कोई गिला नहीं तुझसे
बस जहन से अपने अब
तुझे खारिज़ कर दिया |

वक़्त के राहगीर थे,
कुछ बातों के बाशिंदे थे,
तुमने गुफ्तगू की
अपनी तसल्ली की दरकार तक,
फिर मूडी तुम
और निकल पड़ी अपनी राह पर,

कुछ रोज़ पहले तक
बहाने ढूँढा करती थी
लम्हे साथ बिताने को
और उस दफ़ा
तू चल पड़ी
वजह एक न थी
मुड़कर निगाहें मिलाने को |

तड़फ़ तेरी रही कुछ रोज़
नहीं, कुछ अरसे तक |
लगाव था तेरा
कि तलब बनी रही,
न थी तू, पता था
फिर भी
जहन में हर लम्हा
यूँ ही ख़टकती रही |

खुद-गर्जी इतनी क्यों
कि
बेवजह ही तू साथ थी
और जाने की भी तेरी
कोई वजह न ख़ास थी |
चल जो हुआ
सो हुआ |
थोडा वक़्त लगा
खुद को समझाने में,
पर अब सब कंट्रोल में है |

कोई गिला नहीं तुझसे
बस जहन से अपने अब
तुझे खारिज़ कर दिया |

Image Source: https://www.flickr.com/photos/joao_trindade/7076233591

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